0

कृष्ण मॉधुर्य भाग2 व्याख्या भाग4 sampat जी

कृष्ण माधुर्य ....2.....................

🌷 *राधे बोलो साथ तुम्हारा* 🌷
        🏵 *कैसे भूलूं* 🏵
                     76

करुणां सागर, कृपा मयी तुम ......
                 दया मयी प्यारी राधे।
भोली भाली जग से न्यारी
          कान्हा प्यारी दिव्य महान।
बरसाने की राज दुलारी
         ललित किशोरी,श्री श्यामा।
तुम्हारे चरण लौटते सारे तीरथ....
          (श्री योगेश वर्मा स्वप्न )

          आज की रचना उस समय की प्रस्तुति है जब कान्हा कंस का उद्धार करने मथुरा गमन कर गए थे। राधिका गोपियों के साथ गुजरा समय याद करते हुए कवि के कान्हा जी कहते है.........
                  हे राधिका जब से मथुरा आया मुझे सबके साथ गुजरा समय याद आता है।तुम्हारे हाथ को थामे गुजारे क्षण याद आ वयाकुल कर देते है।
                          तुम्हारे साथ गुजारा समय आज भी चल चित्र की तरह मेरे साथ चलता रहता है आसान नहीं है उस गुजरे समय को भूल जाना।स्मृतियां जितनी पुरानी होती जा रही याद को और नया कर देती है।
                      वो चांदनी रात में मधुबन में तुम संग रास नृत्य  करना।गोपिकाओं के गीत संगीत से भरपूर राग रागिनी, वो काली घटाओं में बिजली का चमकना ।यमुना का किनारा और वंशीवट को कैसे भूल सकता हूँ।
                            वो कलियों पर गुंजायमान भंवरों की मधुर ध्वनि, शाम के समय घर लौटते हुए परींदों  का कलरव वो समय जो तुम्हारे साथ बागों और गलियों में की गई चहलकदमी , राधे मैं नहीं भूल सकता उन परम प्रिय क्षणों को जो हमने साथ जिए है।
               स्मृतियां तो वैसे भी कभी भुलाई नहीं जा सकती वो तो परछाई की तरह सदैव मनुष्य के साथ रहती है और उनमें भी वो क्षण जो जीवन की मधुरता हो ,हमेशा याद रहते हैं।नमन वंदन आभार ऐसी भावनात्मक कृति तथा रचनाकार जी का, जय हो ।
             श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ....2 .........

🌷 *प्रभु का ध्यान लगा* 🌷
🕉 *मनवा अन्तर्मुख* 🕉
      🎊 *होजा रे* 🎊
                77

पंच तत्व से मिला हुआ सा लगता है  तन
और हुआ है ब्रह्म लीन सा मन का दर्पण
सम्मोहित हूँ कृष्णा के आकर्षण से
मुक्त आत्मा जैसे कर बैठी तन अर्पण
( श्री योगेश वर्मा स्वप्न )
      आज की रचना भी ध्यान के माध्यम से प्रभु प्राप्ति की प्रेरणा से प्रेरित कर रही है ।कवि कहते हैं कि हे मन तूं प्रभु में ध्यान को एकाग्र कर उसी में खो जा स्वयं को भूल उसी में समाहित होजा इस जगत की मोहमाया को छोड़ कर परमात्मा से नाता जोड़ ले।
            दोनों भवों के बीच में ध्यान को केंद्रित कर प्रभु नाम के मंत्र का जाप कर अपनी सारी चेतना शक्ति को मस्तिष्क में केंद्रित कर अपने आप को भूल जा कि तुम कौन हो तुम्हारा नाम क्या है,स्वयं को परमात्मा में समाहित कर गहरी निद्रा में सोजाओ।
          और इस प्रकार अमृत पान करने का सुख पाते हुए ईश्वरीय तत्व के और नजदीक जाने का प्रयास करते हुए अपने जीवन की सफलता के लिए ईश्वर का धन्यवाद करें ये सोचकर उनकी कृपा हम पर निश्चित रुप से बरसी है तभी हम उनका सामिप्य पाने के सामर्थ्य को जुटा पाए हैं ।जगत की सारी मोहमाया को त्याग कर प्रभु के सेवक बन जाओ।
          प्रभु धाम ही हमारा वास्तविक घर है ,इसलिए इस जगत के रिश्ते नातों के बंधन को तोड़ हमें अपने वास्तविक घर जाना है ये संसार रुपी हमारी यात्रा समाप्त होने का समय आ गया है बस जीवन के सभी काम पूर्ण होने को है जब पूरी तरह से आत्मा परमात्मा में विलीन हो जायेगी तभी सम्पूर्णता प्राप्त होगी यही सृष्टि का नियम है इस संसार में ही तन मन धन सब रह जाएगा जब आत्मा तन से निकल कर उस ब्रह्म में समाहित होजायेगी।
          आध्यात्मिकता तथा विरक्ति के भाव से प्रेरित करती रचना हमें सावधान करती है कि ईश्वर से एकात्म होना , ध्यान लगाना , स्वयं को ईश्वरीय तत्व से जोड़े बिना जीवन की सार्थकता नहीं ध्यान के माध्यम से ईश्वर का सामिप्य पाया जा सकता तभी जीवन सफल है।नमन है ऐसी सुन्दर प्रेरणादायक रचना व रचनाकार जी को नमन वंदन जय हो ।
        श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ...2..........

🌷 *चलो बृज भूमि करती*🌷
  ❣ *याद शयाम का* ❣
      🎊 *न्योता आया* 🎊
               78
वृंदावन में जाए जो सो गोपी बन जाए
आए जो एकबार वो कान्हा का हो जाए
माटी माथे से लगाए जो बोले राधा नाम
उसके पीछे प्रेम से चल देते घन श्याम
जन्म जन्म के बाद ही एसा पड़ता योग
वृंदावन में वास का मिलता जब संयोग
  ( श्री योगेश वर्मा स्वप्न )
       आज की रचना में भी पावन वृंदावन धाम की महिमा का बहुत सुन्दर बखान किया गया है ।कवि कहते हैं कि इस भूमि पर वही कदम रखने का सोभाग्य प्राप्त कर सकते हैं जिन्हें श्याम स्वयं बुलाते हैं । आज बृज भूमि ने मुझे याद किया है श्याम सुन्दर ने  मुझे वृंदावन आने का आह्वान किया है ।
          गोपियां जहाँ पर अपनी मटकियां छुपाती है आओ सब मिल चुपके से उस स्थान पर चलें।और मटकियों को फोड़ दूध से नहाए सुन्दर बाल क्रीड़ा का वर्णन करते हुए कवि उस स्थान की महिमा बताते हुए कहते हैं कि वो स्थान जहाँ पर कान्हा जी को माखन चोर, चित्त-चोर कहा गया जहाँ श्याम सुन्दर ने माखन लुटा लुटा कर खाने और खिलाने का आनंद बाल क्रीड़ाओं से प्राप्त किया ।
       उस वृंदावन धाम में जहाँ कान्हा जी ने गोवर्धन पर्वत पर गायें चराई ,गायें रंम्भा रम्भा कर अपने बछड़ो को पुकारती हैं।उन्हीं के बीच बैठ कर कन्हैया और उनके गोप आगामी बाल क्रीड़ा की योजना तैयार करते है श्याम सुन्दर अपनी मस्ती में झूम बंसुरी की स्वर लहरों को छोड़ सबके दिलों को  बेचैन करदेते हैं ऐसे महिमा मंडित वृंदावन धाम में मधुर मुरली धुन सदैव अमृत की बरसात करती है।
          यमुना के किनारे मधुवन में शीतल व सुगंधित सुखद हवाऐं चलती रहती है,चंद्रमा की चांदनी जहाँ अपने प्रकाश की आभा चारों ओर फैलाती रहती है ,जहाँ राधिका जी की आठों सखियां राग 'मल्हार ' की संगीत मय स्वर लहरों से वातावरण और सुन्दर व पावस ऋतु का आह्वान कर रस मय बनाती  हैं। जहाँ पर श्याम सुन्दर ने जगत का अद्भुत रास रचा कर जगत को ही नहीं देवताओं को भी आनंदित कर दिया था ।
             ऐसी सुन्दर महिमा है वृंदावन धाम की जहाँ कौन होगा जाकर इन सबके आनंद से वंचित रहना चाहेगा मन पंछी तो अपनी उड़ान से जब चाहे उस आनंद को प्राप्त करने को आतुर रहता है ।हे ! कान्हा मुझे अपनी शरण में लेलो।ऐसी सुन्दर मन भावन कृति के लिए धन्य हैं रचना व रचनाकार जी बारम्बार नमन वंदन जय हो ।रचना जितनी मन भावन और सुखद है उसकी अभिव्यक्ति शब्दों में करना मेरे जैसे अदना प्राणी से संम्भव नहीं ।
       श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ...2..........

🌷 *सुख पाने है तुमको*🌷
💞 *अपने तन के मन* 💞
  💗 *के प्राण के* 💗
                 79

अब सौंप दिया इस जीवन का
            सब भार तुम्हारे हाथों में
है जीत तुम्हारे हाथों में
            और हार तुम्हारे हाथों में ।
मुझमें तुझमें बस भेद यही
              मैं नर हूँ तुम नारायण हो
मैं हूँ संसार के हाथों में
               संसार तुम्हारे हाथों में।
आज की रचना में बताया गया है कि आपमें यदि प्रभु को पाने तीव्र चाहत है ललक है तो स्वयं का विवेचन करते हुए बताई गई खूबियों को परखते हुए भगवान के भजन तत्पर हो जाओ ।
       कवि कहते हैं कि हे बंदे अगर तुझे तन,मन,और प्राणों से सुखी होना है सुख पाने ललक है तो सच्चा सुख ईश्वर की भक्ति में है ।इसलिए भगवान का भजन पूर्ण समर्पित हो भक्ति करो।
         अगर दीन दयाल की दयालुता की पात्रता प्राप्त करनी है,और  उनकी सेवा का आनंद प्राप्त करना है तो भगवत भजन को अपनी दिनचर्या में समाहित कर लो और पूरी तरह उसमें लीन रहो।
        अगर आप भिक्षुक बन भगवान से कुछ प्राप्त करना चाहते हो तो वरदान या कोई कामना मन मे है तो भगवान की आराधना कर उन्हें स्वयं में धारण कर ध्यान के माध्यम से अपनी कामना प्राप्त करो।
          अगर आप अपने अभिमान व  घमंड या किसी बुराई को छोड़ना चाहते हैं तोभगवान के भजन में स्वयं को लीन कर प्रभु को अपने में धारण करना होगा स्वयं ही आप में आत्म बल आ जायेगा बुराई को दूर करने में सफलता प्राप्त करने की।
            अगर आप को परमात्मा को खोजना है तो स्वयं में ध्यान के माध्यम से खोजना होगा इंसान गर ठान ले तो मुश्किल कुछ भी नहीं ध्यान लगा कर अपनी आत्मा को परमात्मा से एकाकार करना होगा और इन सबके लिए भगवत भजन को ही जीवन में स्थान देने पर संभव है।
      अगर मधुर मनोहर मुरली की धुन सुननी है तो भगवत भजन करना होगा ध्यान लगाने की स्थिति मे ही इस आनंद की प्राप्ति की जा सकती है।
       अगर इस ब्रह्मांड के अभिनेता हमारे संसार के पालनहार श्री चक्रधारी कृष्णा को पाना चाहते हैं तो भगवत भजन के बिना ये संभव नहीं इसलिए तुरंत स्वयं को भगवान की भक्ति में समाहित करना होगा ।
        अगर इस जगत की मोह माया से छुटकारा पाकर मुक्ति चाहते हैं तो मुक्ति का मार्ग अपनाना होगा इसके लिए भगवत भजन ही मात्र इसका साधन है हमें भगवान की भक्ति करनी होगी ।
          बहुत सुन्दर उपयुक्त सुझावों से सजी रचना जीवन को सार्थकता प्रदान करने में सहायक रचना तथा रचनाकार जी को बारम्बार नमन वंदन जय जय हो ।
      जय श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य .....2........

🌷रख दिया सिर तेरे 🌷
🎊 *चरणों में न उठने* 🎊
     💗 *पाएगा* 💗
               80

पागल हूँ मैं दास तुम्हारा मेरे ठाकुर
        दर्शन अब देदे अंखियां दर्शन को प्यासी
कब तक आँख मिचौनी खेलोगे अब प्यारे
      वृक्ष बना है बीज प्रेम का जो था अंकुर
   ( श्री योगेश वर्मा स्वप्न )
आज की रचना में भक्त का भगवान के सामने समर्पण है सबकुछ छोड़ प्रभु को जीवन समर्पित है ।कवि कहते हैं कि हे भगवान मैं पूर्ण रुप से आपको समर्पित हूँ इन चरणों से अपना शीश तबतक नहीं उठाऊँगा जब तक कि आप मुझे स्वीकार नहीं कर लें । ये मेरी भी हठ धर्मिता है।
         मैं रो रो कर प्रभु आपके चरणों को अपने आंसुओं से धोता रहूँगा, और आपके चरणों के धोये पानी को अपने शीश पे धारण करता रहूँगा ,जब तक आप अपना हाथ मेरे सिर पर नहीं रख देते ।
         भगवान आपके चरणों में ही स्वर्ग मुझे मिला है अब इनको छोड़ मुझे इस संसार से कुछ नहीं चाहिए नगर चाहिए नाघर मूर्ख ही होगा जो इस स्वर्ग को छोड़कर जाना चाहेगा मैं उन में से नहीं मैने तो यही मुकाम बना लिया है।
      मैने तो अपनी जिन्दगी  आपके भरोसे पर छोड़ दी है इन चरणों के सिवाय अब कोई बंधन नहीं अब तो जीवन इन चरणों में ही आनंद पूर्वक बीतेगा।
           समर्पण की भावनाओं तथा विरक्ति की ओर प्रेरित करती रचना व रचनाकार जी को नमन वंदन जय हो।
       श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ....2.........

💕 *तेरी दुनिया से अब मैं* 💕
  🌷 *दूर जाना चाहता हूँ* 🌷
                    81
मैं तो तेरी चरण धूल हूँ ।
           या चरणों में पड़ा फूल हूँ
तेरे चरणों की आस कन्हैया तेरा हूँ।
माया के कारण भरमाया
           खुद को अब तक समझ न पाया
रुदन हूँ या हास कन्हैया तेरा हूँ ।
  ( श्री योगेश वर्मा स्वप्न )
आज की रचना प्रभु से एकाकार कर प्रभु की अनुभूति की जा सकती है ऐसी प्रेरणा को प्रस्तुत कर रही है कवि का एकाकार *आत्मा का  परमात्मा* से साक्षात्कार होने के पश्चात जो अनुभूति और मन के भीतर उठ रहे उदगार हैं वो इस रचना के माध्यम से कवि प्रकट कर रहे हैं ।कवि कहते हैं कि हे भगवान आप द्वारा रचाई गई इस दुनिया से अब मैं अलग हो जाना चाहता हूँ बस आप को ही पाना चाहता हूँ ।
          बस हमेशा ध्यान मग्न हो अपनी आत्मा को परमात्मा में विलीन कर गहराई तक आप को मुझमें महसूस करना चाहता हूँ, मेरे चारों ओर आपके वरचस्व का एक घेरा सा आवरण सा बना रहे मैं सिर्फ और सिर्फ आप को महसूस करु बाहर की दुनिया का प्रभाव मुझ पर नहो ये आत्म परमात्मा के लिए बहुत तड़पी है ये मैं मेरे प्रभु आपको बताना चाहता हूं।
          मेरे मुरली मनोहर मै बहुत जल्दी आपके पास लौट कर आउंगा ऐसा मुझसे आपने भी प्रकट किया था ।पर आपकी बनाई इस दुनिया के मोहजाल में उलझ कर रह गया ।अब आप से किए गये वादे का निर्वाह करना चाहता हूँ ,*भ* शब्द के अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग किया गया है।
         प्रभु आपसे की गई बातों का स्मरण मुझे हो आया है सपने भी वही दिखाई देते हैं बस भगवान इस संसार के बंधन व मोहमाया से परे हो जाऊँ छुटकारा पा लूँ ऐसा कोई उपाय बताए प्रभु कि आपके सामिप्य पा जाऊँ।
            कभी आपकी मधुर मुरली सुनूं,बृज का वासी बनूं,गायें चराने में कभी गोपियों के साथ बहाने बना मजाक करना ऐसी इन सब बातों ने जो मन ने महसूस की है उन्हें पूर्णता प्रदान करने देखे गए सभी सपनों को सच करना चाहता हूँ ।
        सम्पूर्ण रचना आध्यात्मिकता से समर्पण की भावनाओं सराबोर है ध्यान से आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करती है ये समर्पण के बिना सम्भव नहीं प्रभु प्रेम में समर्पित रचना एवं रचनाकार जी को बारम्बार नमन वंदन जय हो।
           श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ....2.........

💗आज बरसते नयना ले💗
📿 *बरसाने आया  हूँ* 📿
              82

हमारो धन राधा श्री राधा श्री राधा
गोविंद धन राधा श्री राधा श्री राधा

आसरा दूसरे का मिले ना मिले ।
मुझको तेरा सहारा आसरा चाहिए।।

    आज की रचना मेरी आराध्या राधा रानी से कृपा की विनय करते हुए राधिका रानी तथा बरसाना की महिमा का गुणगान किया गया है।आज की रचना में * यमक अलंकार* की छटा सम्पूर्ण कृति में छिटकी हुई रचना की शोभा में चार चाँद लगा रही है ।कवि *यमक* का प्रयोग करते हुए कहते हैं कि आज नैनों में अश्रु की धारा लिए हुए राधिका रानी जी आपके बरसाने में दर्शन के लिए आया हूँ ।मैं अपनी भावनाओं रुपी पुष्पों की बरसात करने आया हूँ बरसाने की लाडली आप मुझ पर अपनी कृपा का उपकार करना ।
        राधिका रानी आपके कृपा रुपी  बरसात मुझ पर हो ऐसी आशाओं को बांधे ,मेरे अपने नयनों की अश्रुओं रुपी बरसात ने मानो झड़ी सी लगा दी है। बरसाने वाली राधिका रानी मुझ पर दया करो,कृपा करो।
    आपकी कृपा और मेहरबानी का *वर* पाने को अपनी नयनों से झरते अश्रुओं को लेकर पूरे विश्वास के साथ आपके पास बरसाने में आया हूँ। हे बरसाने वाली राधिका रानी मुझ पर दया करो कृपा करो।
        कई सालों से एक लगन मन में पाली थी कि बरसाने में आकर आपकी चरण रज को पाकर अपने शीश पे धारण कर धन्य हो पाऊंगा आप मेरी आशाओं को पूर्ण करने की कृपा करे।
      काफी साल बीत गए बरसाने में आने की सोचते हुए पर मैं आपकी *कृपा वृष्टि* से वंचित रहा अब कृपा करो अब कृपा करो।
           बरसाने मे रहने वाली राधिका रानी आपने मुझ पर अपनी कृपा रुपी बरसात बरसा कर कृत कृत्य कर दिया है मुझे बरसाने में बुला कर आपकी कृपा अब मुझ पर बरसाओ ।
        नयनों में अश्रुओ की धार है पर मैं धन्य हो गया हूँ क्यों कि आपके समक्ष *बरसाने* में मेरे नयनों को *बरसने* का अश्रु बहाने का अवसर प्राप्त हुआ है ।कृपा करो मेहर करो महारानी राधे कृपा करो।
        आराध्या राधिका रानी के प्रेम में गोते लगाती भीगी भीगी प्रेम से सराबोर हुई प्रेम की बरखा बरसाती मनोहारी ,हृदय स्पर्शी रचना व रचनाकार जी को नमन वंदन जय हो ।
          श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ....2.........

🌷 *धन्यवाद,जो मुझको*🌷
🎊 *अपना मीत बनाया* 🎊
             83

सत्गुरु हमसौ रीझि कै कह्य एक परसंग
बरसै बादल प्रेम को भींजि गया सब अंग
         ( संत कबीर )

    आज की रचना में भी ठीक इसी प्रकार की प्रस्तुति है ।कवि कहते है कि हे प्रभु आपका शुक्रिया जो आपने मुझे अपना दोस्त बनाया आपको बार बार नमन पर चक्रधारी कान्हा आपको मुझमें ऐसी क्या खूबी नजर आई, मैं तो गुणों से रहित आपका सेवक बनने लायक नहीं हूँ आपने कैसे परख कर अपने आश्रय में ले लिया।
          आप तो कन्हैया करुणा के सागर हैं ।मैं तो आपकी शरण पाकर निहाल हो गया कर्ज दार बन गया हूँ।आपके चरणों की धूल बना कर हे गोवर्धन को धारण करनेवाले कृष्ण मुझे रख लो ।
        आप जैसे भी रखेंगे मैं रहलूंगा   बस मुझे कभी अपने से दूर मत कर देना अगर आपने मुझे सच्चा मित्र बनाया हैतो बार बार नमन आपको।
           आप मेरे है मैं आपका बडी कृपा है आपकी ।आपको पाकर तो मैं धन्य हो गया हूँ, मुझे सदैव आपका दास बना कर रखना मेरे प्रभु चाहे आप मेरा जो कुछ भी है वो सब आप मुझसे छीन लें आप ही तो दाता हैं,बार बार आपको मेरा नमन है।
             सबके पालन हार ,करुणां के आधार ,दीनदयाल, हे दातार ,गिरी वर धारी,कृष्ण मुरारी ,लीला धारी आपके असंख्य रुप आपकी जय हो।जय  हो आज की  रचना व रचनाकार जी नमन वंदन ,,,,,,,।
            श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ...2..........

💗 *प्यार तेरा चाहिए था* 💗
💙  *मिल गया है* 💙
              84

ना मैं धन चाहूँ ना रतन चाहूँ
     तेरे चरणों की धूल मिल जाए
         तो मैं तर जाऊँ हाँ मैं तर जाऊँ
             प्रभु जी तर जाऊँ,,,,,,,,,,,

आज की रचना में मन चाहा पूर्ण होने से खुशी कुछ इस तरह व्यक्त हो रही है "" तुम आ गए कान्हा नूर आ गया है।""  कवि कहते हैं कि हे कान्हा जी मुझे आपका प्रेम मिल गया मुझे और कुछ नहीं चाहिए ,धीरे धीरे कमल रूपी मन भी खिल कर खुश होने लगा है ।हे कान्हा मुझे आप से और क्या चाहिए।
          प्रभु मुझे आपके चरणों की धूल की लालसा थी ,उसकी चाह मे मैं त्रिशंकू की तरह झूल रहा था मन अस्थिर हुआ भटक रहा था आपका सहारा मिल गया और मेरे प्रभु मुझे क्या चाहिए।
         सदगुरु आपकी कृपा से मैं धन्य हो गया हूँ।मैं पहले का सा दीन हीन हीन नहीं आपकी कृपा रुपी दौलत से मैं परिपूर्ण हो गया हूँ और जीवन में आसानी, मैं सफल हो गया है ,मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
         आपकी जिस पर कृपा बरसी हो वहाँ बस आनंद ही आनंद है ज्ञानियों के सत्संग का समागम प्राप्त हो गया  हो उसे और क्या चाहिए, यहाँ अभिमानियों का कोई स्थान नहीं सब कुछ नया नया सा है मुकाम नया मुकाम तक पहुँचाने वाले खेवनहार नए मंजिल का पता मिला फिर और क्या चाहिए प्रभु बस आपका सहारा उसे डर काहेका।
           हरि दर्शन की ओर प्रेरित करती रचना सुन्दर भावनाओं से भरी  विरक्त की ओर प्रवृत करती रचना व रचनाकार जी को नमन वंदन जय हो ।
           श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ....2........ 

🌷 *ये दर्द कहाँ ले जाऊँ ये* 🌷
🎊 *दुखड़ा किसे सुनाऊं* 🎊
             85
             
हमने दिल की किताब कुछ इस तरह बनाई है
इसके हर पन्ने पर कान्हा की याद समाई है
कहीं न फट जाए इसका कोई भी पन्ना
इसी लिए " राधे " नाम जिल्द इसपर चढ़ाई है।

अर्पित जीवन तुम्हें सांवरिया मेरे कान्हा
मत तरसाओ और सांवरिया मेरे कान्हा।

आज की रचना के एक एक शब्द में दर्द की पराकाष्ठा है व्यथित हृदय के करुण कृन्दन स्वर सुनाई पड़ता है।कवि हृदय तो वैसे भी बहुत भावुक होता है ,उस पर भी यदि पीड़ा का प्रहार हो तो कवि ने प्रभु का आश्रय लेकर अपनी व्यथित हृदय की व्यथा को प्रकट करते  हुए कहा कि प्रभु आपके अलावा इस जगत कौन है जिसे जाकर मैं अपने घावों को दिखा कर अपने मन की पीडा़ को व्यक्त कर सकूं प्रभु इस जगत में सुख के साथी बहुत है दुख मे न कोय ।
          प्रभु आप तो अन्तर्यामी है सब कुछ बोले बिना ही जानने वाले ,मुझ पर जो गुजर रही है मेरी भावनाओं ,मेरे एहसास इन सबके बारे में आप के अलावा और किस के द्वार पर बताने जाऊँ आपको तो सब पता है कि मेरा और कोई नहीं है ।
      इस बेदर्द दुनिया में कान्हा जी पाना बहुत कठिन है ,जहाँ आंसू बहाना भी दुश्वार  हो उन आंसुओं को कैसे और कहां छुपाऊँ।आप की अगर कृपा हो कान्हा तो मैं आप के नाजुक चरणों में पनाह पालूं।
            कन्हैया या फिर मूझको ऐसा वरदान दे दो कि मेरी प्रकृति पाहन जैसी हो जाए आप की तरह मुझ पर भी दुनिया के कहने सुनने का कोई प्रभाव ही ना पडे कटु वचन भी सहजता से सुन लूं।
            मैं तो प्रभु मेरा जीवन आपके भरोसे पर ही बिता रहा हूं ।हे प्रभु अब इन मोहमाया रुपी जो रिश्ते और बंधन हैं इन सबसे मुझको मुक्त करदो ।मेरी आपसे यही विनती है कि मुझे आप अपने में ही मगन कर दें,रत कर दें समाहित कर दें मैं मैं न रहूँ, आपमें ही खो जाऊँ।
        प्रभू पर पूर्ण समर्पण भावनाओं से सिक्त, दुनिया दारी से विरक्त प्रभु चरणों में आसक्त होने की प्रेरणा दायक रचना व रचनाकार जी को बारम्बार नमन वंदन जय हो ।
          श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ....2 .........

   💞 *छोड़ी कश्ती और* 💞
          🚣🏻‍♀ *पतवार* 🚣🏽‍♂
                      86

रंग में तेरे रंग गई गिरधर छोड़ दिया घर सारा
बन गई तेरे प्रेम की जोगन लेकर संग एकतारा
ओ यहां सांचो तेरो नाम रे ।
बनवारी रे जीने का सहारा तेरा नाम रे
मुझे दुनिया वालों से क्या काम रे।

आज की रचना के भाव ने मीरां बाई के भजन की याद दिला दी ।सांसारिकता से विरक्त ,आध्यात्मिक जीवन की ओर अग्रसर करने को प्रेरित करती है ।कवि कहते हैं कि हे भगवान मैंने संसार रुपी सागर में सांसारिक जीवन रुपी नैया व पतवार रुपी सम्बंधों को छोड़ ईश्वर आपकी शरण में आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए संसार से विरक्त हो गये हैं ।
       अब हमारा उद्धार निश्चित है अब हमें कोई बंधन नहीं रोक सकता अब कोई न रोक सकता है न अटक लगा सकता है ।
       हम सांसारिक सारे रिश्ते नातों को तोड़ ,सभी के मोह ,प्रेम से वैराग्य होकर आपकी सेवा को अपना लक्ष्य बना कर आएं हैं कान्हा आपकी शरण में ।
      आपकी मुरली की मधुर धुन सुनने के पश्चात रुक पाना कठिन है कान्हा  अब आप हमेशा अपने आस पास ही रखना यही हमारा अनुनय विनय आपसे बारम्बार है ।
       हमने तो हे प्रभु आपको ही सबकुछ मान लिया है आपसे ही दिल से मेरा नाता है यही मेरा सपना था अब आप अपनी शरण मे बनाए रखना ।
        मैंने जब भी प्रभु आपका जाप किया  ध्यान लगाया हमेशा आपको अपने में पाया आप मेरे एहसास में निहित हैं क्यों कि मैंने बार बार आपके दर्शन अपने में किए हैं।
           सम्पूर्ण समर्पण प्रभु मय एहसास देती ,व आध्यात्मिकता की ओर प्रवृत्त करती रचना व रचनाकार जी को नमन वंदन जय हो ।,,,
            श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ....2.....................

🌷 *जिस दिन कान्हा तुझे निहारा*
       🌺  *निहारते चले गए* 🌺
                           87

तेरी प्रीत की वंशी ने दिल मेरा.....
                      चुराया आजा रे ।
कहाँ छुपा है निर्मोही तोसे नेहा
                      लगाया आजा रे।
हम तो तुझको अपना समझे तू
              निकला चितचोर मगर।
राह राह तेरी तकते ........।
  ( श्री योगेश वर्मा स्वप्न )

             .आज की रचना भगवान के लिए भक्त की  प्रेम और अनुराग में डूबी करुण पुकार है ।उनके रुप माधुर्य रस में भीगे भक्त उनके गुण गान कर रहे हैं भक्त कवि कहते हैं कि .......
               कन्हैया जिस दिन से आपके दर्शन पाए बस आंखों में छवि उतर गई हैं।सदैव उस मोहिनी छवि को निहारते रहते हैं।कन्हैया आपकी कृपा का पात्र बनने के बाद से ही अपने जीवन को सवरतें हुए आभास कर रहा हूँ।
        आपके सौंदर्य पर रीझ कर कभी आपका श्रृंगार करता हूँ तो कभी मुरली धुन पर रीझ कर अपनी सुध बुध भूल जाता हूँ। कभी तेरे विरह में वियोगी हो कर आपको पुकारता रहता हूँ।
                      कभी दुखों से जब अधीर हो जाता हूँ तो आपको पुकार कर मिलने की गुहार करने लगता हूँ। कभी आशा करता हूँ कान्हा आपके प्रेम रुपी पुष्प के खिलने की ।तेरी ही भाव भक्ति में खोए हुए तेरी आरती उतारते ही चले जाता हूँ।
                अब तो आपकी शरण मिल जाए बस एक ही चाहत बाकी है। आपके चरण शरण की सेवा अब मिल जाए जीवन का यही लक्ष्य बचा है। आपके चरणों की सेवा में बस आपके चरणों पखारते हुए जीवन गुजर जाए ।
                 भक्त का भगवान के प्रति समर्पित भाव को प्रस्तुत करती है आज की रचना। बस जीवन प्रभु मय हो जाए के भावनाओं की अभिव्यक्ति करती तथा रचनाकार जी को नमन वंदन आभार ।जय हो ।
            श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ....2.........

*है अधीर मन तड़प रहा तन*
💗 *बहती अश्रु धारा* 💗
               88

तेरी प्रीत में बिसर गई जग
           कृष्ण कृष्ण बोले है रग रग।
धीरज खोता जाता हर पल
          तुझ बिन कोई नहीं है सम्बल।
तेरी याद में बीत रहा है
        पल पल श्याम तड़पता जीवन।
जब से प्रीति लगी मन मोहन ...

  ( श्री योगेश वर्मा स्वप्न )

          आज की रचना कृष्ण विरह में गोपिकाओं की विरह वेदना को प्रस्तुत करती है ।जब कृष्ण वृंदावन से मथुरा गमन कर गए थे ।कवि की गोपी विरह वेदना से संतप्त हुई कहती है कि --
        हे कन्हैया आपके बिना मन बहुत बेचैन है आपका न होना बहुत तड़पाता है और नयनों से आंसुओं का बहना रुकता ही नहीं ।बस मन में आकुलता है कि आपसे कैसे मिलन हो यही अन्तर्वेदना मन को जकड़े हुए है।
              कामों में व्यस्त दिन तो भागते दौड़ते गुजर जाता है ।पर रातों में नींद नहीं आती ऐसे ही जीवन गुजर रहा है।समय है कि जैसे ठहर गया हो व्यतीत ही नहीं होता ।नयन आपके आने की राह में टकटकी लगाए हुए आपके द्वार को निहारती रहती है।
           आपकी बांसुरी की आवाज जैसे मुझे ढूंढ रही है ।इस प्रकार हृदय में गूंझती सी जान पड़ती है ।और मन को अजीब सी दुविधा में डाल देती है ।आपके पास आने के लिए व्याकुल मन को रोकना कठिन हो जाता है ।मिलन की कोई युक्ति समझ नहीं आती।
         लाख उपाय भी मिलन को सार्थक नहीं बना पाते ।बिचारा दिल अन्दर ही अन्दर  बिलखकर रह जाता है।अपने ही रंग में सबको रंग लेने वाले मोहन बावरी मीरा का सा मन बस तेरे ही आसरे को ढूंढ रहा है ।
          आज की रचना विरह वेदना की असीम गहराई में डूबी है ।कृष्ण वियोग का सुन्दर चित्र प्रस्तुत करती है ।जिसमें कवि माहिर है ।नमन वंदन ऐसी कृति व रचनाकार जी को जय हो।
            श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ....2.....................

💗  *मेरे दिल की पुकार* 💗  
         💗 *सुनकर* 💗
                    89

एक बार आजा कान्हा
                    तुझको निहार ल्यूं।
मनड़े में कान्हा तेरी
                     मूरत उतार ल्यूं।
मगन तिहारो कान्हा
                     कांई तो विचारो ।
चरणां री धूल म्हारी
                  पलकां से बुहार ल्यूं।
एक बार.....।

               आज की रचना प्रभु भक्त प्रेमी की पुकार है।आशा और विश्वास में बंधा भक्त पुकार पर प्रभु आएंगे और सम्बल बन जाएंगे। कवि कहते हैं कि ......
           हे भगवान जब आप मेरे दिल की करुणं पुकार सुन कर आएंगे ।उस दिन मैं समझूंगा कि मेरी किस्मत बुलंद है।
                          इस मन का दमन कर आपके आने की आशा में बैठा हुआ हूँ। क्यों कि तेरा नाम लेने पर सब मुझे पागल कहने लगते हैं।
            आज आप दुनिया को बता दो कि मैं वैसे ही पागल नहीं हूँ। मैं तो सचमें आपका प्रेमी हूँ। ये देख कर जो आपको भूले बैठे हैं वो बेचारे भी मेरी तरह आपका नाम जाप करने लग जाएंगे।
                           आप उनके सम्बल बन उन्हें सहारा देना।इस जग में जिसका कोई नहीं उनके सहारे बन जो जग से हार  गए हैं उन्हे विजय श्री दिला देना।
               आप तो जगत के प्रेमी है।प्रेम करनेवाले आपको प्रिय कर हैं ।उन आपके प्रेमियों पर प्रेम लुटा दो जो जीने की हद तक आपको प्रेम करते हैं।
                 प्रभु प्रेम में पागलों की तरह प्रभु से प्रेम करते है उनके मनोभावनाओं को व्यक्त करती है आज की रचना।नमन वंदन आभार ऐसी प्रभु प्रेम मयी कृति तथा रचनाकार जी को, जय हो ।
        श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ...2

🌷 *ओ जगत के मदारी* 🌷
     💞 *कन्हैया* 💞
               90
हे। दीन बंधु ,हे दया के सागर, हे जगदाता,हे दयानिदान।
हे कृष्ण कन्हैयागोपाला, हे मुरलीमनोहर,कृपानिदान
हे कृपा सिन्धु,हे करुणाकर, हेजगतपति,हे जगदा्धार
हे करुणां,वरुणांलय अब सुन लो करुण पुकार।
  ( श्री योगेश वर्मा स्वप्न )
        कान्हा तेरे कितने नाम हर देश में तूं हर वेश में तूं तेरे नाम अनेक तूं एक ही है।आज की रचना ने आपको कन्हैया एक और नाम दिया है वो भी बड़ा सार्थक नाम है सारे ब्रह्मांड की डोर आपके हाथ में हैं और आप जिसको जैसा चाहे नचा देते हैं । जैसे मदारी अपने जमूरे से करवाता है इसी सम्बोधन से कवि कहते हैं कि --
                ओ जगत को अपने अनुसार चलाने वाले मदारी कन्हैया आपकी लीला सबसे अनूठी है।आप जो चाहे कर सकते हैं मुझे अपने मंदिर का पुजारी बना कर अपनी सेवा का अवसर प्रदान करो ।
        हे कान्हा मैं तो जन्मजन्मान्तर से तुम्हें प्रेम करता आया हूँ ।तुम्हारे द्वार पर आकर खड़ा हुआ हूँ तुम्हारी आरती करने को मन तड़प रहा है ऐसा अवसर प्रदान करने की मुझ पर भी अनुकम्पा करें।
         मेरी आपसे विनती है कि मेरे कर्मो के फल अपने सुपुर्द मान मुझे इनसे वंचित कर दें चाहे वो कर्म भाग्य के लिखे हों या संचित किये गए हों मुझ पर इनका भार अब न रहे इन सब से मुझे आजाद कर अपनी शरण में लेलो प्रभु।
         मेरा ये जीवन आपके प्रेम रुपी  रस को पीकर सार्थक हो जाए आपके जाप नाम की खुमारी में डूब स्वयं को भूल जाऊँ।फिर इस खुमारी से कभी होश ना आ पाए स्वयं को उसी में डूबा दूँ।
           अपने भाल पर आपके चरणों की धूल को धारण कर स्वयं को धन्य करलूँ।आपके चरणों में सदैव अपने शीश को नतमस्तक कर पाऊँ ये मेरा आपकी सेवा का सौभाग्य मुझसे कभी ना छूटे ऐसा वरदान कन्हैया मुझे प्रदान करें।
          कृष्ण प्रेम व भक्ति की अटूट श्रद्धा, आस्था व सेवा की ओर प्रेरित करती प्रेरणादायक रचना। नमन है ऐसी भक्ति की सागर रचना तथा रचनाकार जी को नमन वंदन जय हो धन्य धन्य है ऐसे भाव।
      श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य .....2 ........

🌷 *ऐसा कोई भजन बने* 🌷
🎊  *जो तड़पा दे तुझको* 🎊
     💗 *कान्हा* 💗
               91
करूँ गुण गान मैं तेरा प्रभु ऐसी कृपा कर दो।
प्रभु इस लेखनी में भी कृपा का प्रेम रस भर दो।
"स्वप्न" की लेखनी से जो नई रचना लिखाते हैं।
उन्हीं का नाम है कृष्णा वही कान्हा कहाते हैं।
  ( श्री योगेश वर्मा स्वप्न )
          आज की रचना में भी कृष्ण के प्रति आपकी अटूट भक्ति स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही है ।समग्रता के भाव को लिए लिए सभी के कल्याण की भावना संजोए अपने प्रभु से मधुर प्रार्थना व विनती के स्वर में कवि कहते हैं कि ---
              आपकी कृपा की लेखनी से प्रभु मैं ऐसा कुछ लिख पाऊँ कि आपके मन में ऐसी तड़प पैदा हो जाए कि आप स्वयं तड़प कर मेरे द्वार पर आने को आतुर हो जाए जैसे आपने मुझे बहुत तड़पाया है ।रूलाया है पर कुछ नहीं । मेरी लेखनी में वही लक्षण भर दो कि हर पढ़ने वाले का दिल बेकाबू हो जाए।
               आपको चाहने वाले आपके भक्त मेरी लेखन को पढ़कर मदमस्त हो झूमने लग जाए अंखियन से प्रेम रस कीे अश्रु धारा बहने लगे जिसमें बस आपके दर्शन की आशा हो आपके दर्शन की प्यास जगी हो ,ताकि आप भी उस प्रलाप को सुन अपने आपमें बेचैन हो जाए आपके स्वर्ग का सिंहासन भी हिल जाए ऐसे में आप विचलित होकर नंगे पांव अपने सिंहासन को छोड़ भागते हुए हमें दर्शन देने को आतुर हो जाएं।
        सभी पर अपनी कृपा बरसाने वाले प्रभु अब मुझ पर कृपा कर के ऐसी रचना का सृजन करवा दो जिसे सुन आपको अपने नियम और तरीकों को भी बदलने के लिए सोचना ना पड़े बिना किसी बात पर विचार किए आप बरबस मेरे सहित आपके चाहने वाले सभी भक्तों को आपका दर्शन लाभ प्राप्त हो जाए मेरी इस समग्रता की भावनाओं को, हे मन की बातों को जानने वाले प्रभु समझते हुए मेरी विनती को स्वीकार करें। सभी पढने और सुनने वालों के भाग्य को दर्शन दे कर सौभाग्य शाली बना दो प्रभु ।
          हे प्रभु मेरी हर प्रार्थना में आपकी ही वंदना हो अर्चना हो ,मस्तक पर आपके ही चरणों की धूल का चन्दन रुपी तिलक धारण किया हो आपके इस स्पर्श का ऐसा सुन्दर परिणाम हो कि हम सभी का चौरासी हजार योनियों से छुटकारा मिल जाए मोह माया के बंधनों से मुक्त हो जाएं, माया धन दौलत भी हमें अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सके हम सभी आपके अनुग्रह से आपके धाम को पाने में सफल हो सकें ऐसी आपकी कृपा हमारे प्रति हो ।
       एक सुन्दर विचार धारा का प्रवाह है रचना में जिसमें *वासुदेव कुटुम्बकम* की भावनाएं पल्लवित हैं।समग्रता की भावनाओं से भगवान के समक्ष अनुनय विनय प्रार्थना की गई है सभी को दर्शन सभी को प्रभु प्रेम से जोड़ने का भाव सराहनीय है नत मस्तक हूँ, नमन वंदन रचना एवं रचनाकार जी को जय हो।
        श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ....2 .........

🌸 *काटो काटो हमारो* 🌸
  🕉 *भव जाल जी* 🕉
                92

हमारे प्रभु औगुन चित्त न धरो।
समदरसी है , नाम तिहारो ,सोइपार करो।।

मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै ।
जैसे उड़ि जहाज को पंछी,
     फिरि उड़ी जहाज पै आवै।।
      ( कविवर सूरदास )
  आज की रचना में भी सूर की भांति रचनाकार जी में भी अपने आराध्य के प्रति भक्ति की चरमावस्था दिखाई देती है उनका मन अपने इष्ट देव श्री कृष्ण के सिवाय और कहीं नहीं टिकता।अपने इष्ट देव से श्री कृष्ण से विनती  करते हुए कहते हैं कि हे मेरे प्रभु मेरे जीवन को जकड़ने वाले जालों रुपी बाधाओं को दूर करो रिश्ते नातों से मुझे विमुख करे गायों के पालक गोपाल मेरे नाथ ।
          हम कब से आपके सामने हाथ जोड़ नमन करके खड़े हैं आपके चरणों में आ के आपकी शरण में पड़े हुए हैं ।आपकी एक बार कृपा दृष्टि जो हम पर पड़ जाए तो हमारा जीवन सफल हो जाए इतनी हम पर कृपा करें।
         आपकी रचाई सांसारिक मोहमाया मुझे घेरे हुए है बड़ी मुश्किल में मेरी जान है कहीं ऐसा न हो कि मैं इनके जाल में फस जाऊँ भगवान मुझे उबार लें इस संसार रुपी सागर से मुझे पार उतार दो प्रभु।
       भगवान मैं तो आपके चरणों के नजदीक पड़ा हुआ हूँ मुझे इन चार दुश्मनों से बचालो मेरे जीवन को इन्होंने घेर रखा है इनसे मुझे बचा लें मुझमें से वासना,गुस्सा, लालच व ममता  जैसे शत्रुओं से आकर मुझे बचा लेना मेरे को संभाल लेना प्रभु।
        इस दुनिया का हाल तो आप से छुपा हुआ नहीं है प्रभु पर मुझ से ऐसा कौन सा अपराध हो गया आप बताओ गलती हो भी गई हो तो क्षमा करके हम पर भी अपनी कृपा का उपकार करें और हम पर कृपा बरसाएं और हमारे जीवन को भी आपकी कृपा व दया से अनुग्रहीत करें।
       प्रभु प्रेम में समर्पित जीवन को विरक्ति की ओर प्रेरित करनेवाली ,सांसारिकता से विमुख करनेवाली रचना व रचनाकार जी को नमन वंदन जय हो ।
                                            श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ....2 ....................

      💐 *हे प्रभु हम गोपियाँ* 💐
        🌹 *करती हैं आह्वान* 🌹
              🙏🏻 *तुम्हारा* 🙏🏻
                         93

जब से प्रीत लगी मनमोहन ।......
       तेरी प्रीत में बिसर गया जग।
कृष्ण कृष्ण बोले है रग रग
                तेरे मधुर रास में झूमे।
धीरज खोता जाता हर पल ।
             लागे सारा जग वृंदावन।
जब से प्रीत लगी मन मोहन.......
     ( श्री योगेश वर्मा स्वप्न )

               आज की रचना में गोपिकाओं के मनोभावनाओं और अन्तर्मन  के भावों की अभिव्यक्ति की गई है। गोपिकाएं मन से तथा मानसिक रूप से कृष्ण से विलग नहीं हो सकती चाहे कृष्ण मथुरा गमन कर गए हों ...कवि की गोपिकाओं की पुकार है कि ......
               हे कृष्ण कन्हैया हम सब गोपिकाएं मिल आप से करुंण पुकार करती हैं कि आप हमारे अनुनय विनय को स्वीकार कर लो।
            मानसिक रुप से हम सब आपकी रास लीला में सम्मिलित हुई हैं। और हमारी मनोकामना है कि आपके दर्शन हमें वास्तविक रुप में प्राप्त हों।
                    हे माधव हमें आप मधुबन में अमृत वर्षा मय  रात्रि में अपने हाथ में हमारे हाथों को थामे हमारे ( प्रथम ) *नृत्य को सफल बनाए। यहाँ कवि ने *नर्तन* शब्द  से श्लेष अलंकार का प्रयोग करते हुए गोपियों से कहलवाया है कि दूसरे रुप में *नर-तन* इस *मनुष्य जीवन* को सफल करें । इस प्रकार एक ही शब्द दो अर्थों में प्रकट हो रहा है।
        इस प्रकार रास की मृदुल शीतल चांदनी के रास प्रेम की गहराई में हम डूब जाएं और दुबारा उबर कर  इस जग में लौट कर ना आएं हे हमारे गिरधर गोपाल हम पर इतनी कृपा करें।
                    प्रेम की चरम गहराई में डूबी हुई है आज की रचना । कृष्ण प्रेम में डूबी गोपियों के प्रेम का कोई सानी नहीं। नमन वंदन आभार ऐसी श्रेष्ठ कृति तथा रचनाकार जी को ,जय हो ।
                  श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ...2 ..........

🌷 *कन्हैया गले से लगा ले*🌷
  💗 *मुझे अपना बना ले* 💗
                 94

कब आओगे मेरे कान्हा
                खड़ी मैं रस्ता देख रही हूँ।
आंसुवन जल पथ सींच रही हूँ।
              अब तो कृपा करो करतार
करो मिलन का अब इकरार।
              तड़पाओ ना कृष्ण मुरार।
आंखों में है सांसे अटकी
            राह निहारु भटकी भटकी।
आकर हाथ पकड़ ले जाएं।

        आज की रचना में कवि ने अन्तस की भावनाओं को प्रभु के सामने सखी व गोपी भाव से बहुत करुणं लेखनी में में प्रस्तुत किया है ।मन के उद्गारों को उजागर करते हुए कवि कहते हैं कि --
             हे कन्हैया आप चाहे मुझे गोपी समझें या सखी बस अपने धाम में बुला कर अपना बना लें मुझे हृदय से लगा कर अपनत्व प्रदान करें।
          कन्हैया मैं आपकी जन्मों जन्मों की सेविका बनना चाहती हूँ।पर आपका धाम बहुत दूर है उसके द्वार पर पहुँच पाना मेरे लिए बहुत कठिन है ।आप तो दिल को चुराने मैं माहिर हैं क्यों न आप मुझमें से मेरे मन को ही चुरा लें ताकि मन आप में गुम रहे ।
            इन सांसारिक भौतिक व निराले बंन्धनों ने मुझे जकड़ रखा है। मोहन वो आप तक पहुँचने में रुकावट है। हे कन्हैया आप आकर मेरा हाथ थाम लें ,मुझे इन बंधनों से मुक्ति दिला कर अपने धाम के द्वार की ओर ले जाएं ।
           मन तो चाहता है कान्हा नयनों से जो अश्रु धार बहती है उनको आपके चरणों में अर्पित कर दूं ।मेरे प्रेम टेक लज्जा रखना प्रभु ।मुझ पर कृपा करते हुए अपने कदमों को मेरी ओर बढ़ाना मुझ पर अपनी दया दृष्टि रखना ।अपने हाथों से मुझे थामना मुझे अपना लेना प्रभु ।
       प्रभु का सामिप्य कौन नहीं चाहता रचना इसी ओर प्रेरित करती है ।दीन व करुणं भावनाओं को द्रवित कर देने वाले शब्दों में प्रस्तुती है नमन वंदन रचना व रचनाकार जी को जय हो ।
          श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ....2 .........

🌷 *उन्हीं का नाम है कृष्णा* 🌷
❣ *वही कान्हा कहाते हैं* ❣
               95

,तू है सब में,सब तेरे में,यही सगुण प्रभु रूप तुम्हारा।
ना तू किस में,ना तेरे में,एसा निर्गुण रूप तुम्हारा
राम कृष्ण ऊँकार हरि हर वेदों में तेरा नाम उचारा
नमस्कार प्रभु बारम्बारा,नमस्कार प्रभु बारम्बारा।
   सगुण, निर्गुण,कण,कण तथा चर अचर में जो समाया हुआ है एसे प्रभु का गुणगान आज की रचना में किया गया है,सकल ब्रह्मांड के जो स्वामी हैं,गुणों की खान हैं,जगत के रचयिता, हमारे प्रभु कृष्ण कन्हैया जिनका नाम है,आज की रचना में वही समाये हुए हैं।
   कवि कहते हैं कि जो भक्त के वशिभूत है,दीनों पर द्रवित होकर सदा उनका मान बढाने वाले है कभी विदुर के घर साग का भोग ,कभी शबरी के झठे बेरों को खाकर, कभी भक्त को दर्शन दे,कभी सपनों में आकार भक्त के वश में हो जाते हैं,उन पर अपनी कृपा बरसा कर धन्य कर देने वाले भगवान कभी कृष्ण, कभी रामा कहलाते है।
       जो प्रभु प्रेम मेंअपने प्राणों की परवाह किये बिना परवाने बन समर्पित हो जाते है पागलपन की सीमा से गुजर दीवानगी की हद से गुथर जाते है ,उनके हर संकट को दूर कर दुखों से छुटकारा दिलवाने वाले हैं।वही कृष्ण और वही कान्हा कहलाते हैं।
       जो राधिका के दिल में समाए हुए राधिका के दीवाने हैं,जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी और कण कण में समाये हुए है।वो राधा जी के चरणों में शीश को झुका धन्य हो जाते है वो कोई और नहीं कृष्ण, कान्हा कहलाने वाले ही हैं।
      अर्जुन के सखा बनकर महा भारत के युद्ध में विराट रूप के दर्शन दे संसार को अनुपम गीता का उपदेश देते है।जो भक्तों को भव से पार उतारते हैं वही कृष्ण और वही हमारे कान्हा जी हैं।
        कवि स्वयं के लिए कहते हैं कि जो मेरी कलम से प्रति दिन रचना लिखवाते हैं उस कलम में मेरे प्रभु आपकी कृपा रुपी प्रेम के रस का संचार कर दो ताकि मैं उस कलम से आपके गुणगान करते हुए आपके प्रेम का भागीदार बन धन्य हो जाऊँ।एसे कृपालु ही श्री कृष्ण और कान्हा कहलाने वाले हैं।
       जो छिप छिप कर मुरली की तान कभी राधा जी, कभी गोपियों और कभी भक्तों को बुलाते हैं वही कृष्ण है और वही कान्हा है।
जिनकी राधिका जी में असीम आसक्ति हैजो उनके पावन प्रेमी है,जिनके प्रेम में सदेव गोपियों का मन भटकता रहता है जो अपने रास में मधुबनी ले जा कर राधिका व गोपियो के साथ नृत्य करते हैं वही हमारे प्रिय कृष्ण कान्हा जी हैं।
        जिनके नाम का जाप ऋषि मुनी आठौं पहर करते रहते हैं, जिनके नाम डंका देव हो या दानव सबके सामने बजता है जो अपनी माया से संसार के चक्र को चलायमान रखते हैं वे कोई और नहीं हमारे कृष्ण कन्हैया ही हैं।
      जिनके गले मे वैजयन्ति माला शोभयमान होकर सीने की शोभा बढा रही है,सिर पर मोर का पंख शोभायमान है,जो अपनी मदमाती मुस्कान से सब के मन को मोहित कर लेते है।इन्हीं सब गुणों का भडार हमारे कृष्ण कन्हाई हैं।
   जिनके रहस्यों को ब्रह्माण्ड के ब्रह्मा भी नहीं जानते ,वेद भी नेति नेति कह कर जिनका पार वेद भी नहीं पा सके ,वही अपने रहस्यों को भक्तों के समक्ष सहज ही खोल देते हैं वही कृष्ण और वही अपना कान्हा जी हैं।
  जय हो जय हो कृष्ण, कन्हैया कान्हा मय कर देने वाली रचना और रचनाकार जी की ।
नमन  वंदन आभार बार बार।
      श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ....2 .........

🌷 *कई वर्ष हो गये हमें* 🌷
  📿 *बृज को छोड़े* 📿
                 96

याः पश्यन्ति प्रियं स्वप्ने धन्यास्ताः सखि योषितः।
अस्माकं तु गते कृष्णे गता निद्रापि वैरिणी।।

   उपरोक्त पद्य में जैसे राधिका जी का विरह व्यक्त हो रहा है वैसे ही आज की रचना में रचनाकार जी ने कृष्ण विरह को उद्धव को माध्यम बना कर कृष्ण की हिचकी से स्मृतियों को जोड़ अपने विरह भावनाओं को व्यक्त करते हैं ।परम्परानुसार हिचकी किसी की याद का संकेत देती है ।कवि के कृष्ण उद्धव से कह रहे है कि ---
            हे उद्धव मुझे बार बार हिचकी मेरे प्रिय जनों के स्मरण का संकेत दे रही है ।बहुत अरसा हो गया है बृज से दूर आए अपनों से बिछड़े ,आज मुझे मैया और बाबा की  बहुत याद आ रही है ।क्यों कि मुझे बार बार हिचकी आ रही है ।
               मेरी मैया आज भी हाथ में माखन लेती होगी तो मेरी यादों में खोकर रह जाती होगी और मेरे आने के  इंतज़ार करती हुई मेरी यादों में खो जाती होगी ।मेरे बाबा कुछ कहे बिना मेरी यादों में गुम चुप चाप चौक में बैठे होंगे।अकेले दाऊ भैया मेरे बिना गायें चरा कर आते होंगे ।मैं ने सब से जल्दी लौट आने के लिए कहा था इस बात से उन्हें कितनी तकलीफ होती होगी क्यों कि मै आजतक वापस नहीं गया।मैं ने जल्दी लौट आने का झूठा सपना दिखाया।
            मेरे सारे साथी मेरी आपस में चर्चा करते होंगे ।मुझ से मिलने को मन में तड़प उठती होगी क्यों कि उनकी यादें मुझे भी तड़पाती है ।मेरी तरह उन्हें भी बचपन के दिन, सारे दिन गैयाओं को चराना , एक पल के लिए भी अलग नहीं होना उन्हें याद आता होगा।मेरे बिना हे उद्धव मुझे याद करके गायें भी विरह की आवाजें करती होंगी जिस प्रकार बच्चे को न पाकर रंभाती है ।हिचकी याद ,,,,,
           गोपिकाओं की याद से ही मुझे रोना आने लगता है।इस जगत में उनको मैं ही तो सबसे प्यारा लगता हूँ।मधुबन में उनके साथ रचाया रास उनके साथ की मधुर रसमयी स्मृतियां नृत्य भाव भंगिमाओं की याद आती है।राधिका जी के प्रेमाश्रु मेरी तरह उनको भी पीडा़ पहुंचाते होंगे मेरे विरह में रोती होंगी मेरी ही तरह रह रह कर मेरी याद उद्धव उन्हें भी रुलाती होगी ।हिचकी इसका प्रमाण है उद्धव वो सब बहुत याद करते होंगे।
         रचना में हिचकी का प्रयोग अनूठा और प्यारा है ।हमारे राजस्थान में हिचकी पर कई लोकगीत बनते व प्रिय लगते आए हैं ।मानने वालों पर इसका प्रयोग सही सिद्ध होता है। कृष्ण विरह प्रस्तुती में रचनाकार जी सिद्धस्त हैं ।शब्द चित्र सी रचना की प्रस्तुती है।जिसमें वाचक गुम हो के रह जाता है ।नमन वंदन रचना व रचनाकार जी को जय हो।
            श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य....2..........

     *कान्हा हमको अपने*
   💗 *बृज की सैर करा* 💗
    🎊 *दे गाइड बनकर* 🎊
                 97

तेरा दीदार हो कृष्णा
                  तुझी से प्यार हो कृष्णा ।
नहीं कुछ और चाहूं तुम
                  मेरा संसार हो कृष्णा ।
जगत के तुम ही निर्माता
                  जगत आधार हो कृष्णा।
है अभिलाषा हृदय की अब
                   दरस साकार हो कृष्णा।
  ( श्री योगेश वर्मा स्वप्न )

             आज की रचना में कन्हैया से कवि की आशाएं हैं कि कन्हैया हम आपके प्रेम के अपने पन में बृज धाम आए हैं आप भी तो उसी अपने पन से हमें बृज धाम के वो सब स्थान के दर्शन करा दें जहां जहां आपने अपनी लीलाएं की हैं आपके अलावा उन सब स्थानों को दूसरा कौन जान सकता है ।रचना के माध्यम से कृष्ण लीलाओं के बारे मेंभी जानकारी मिलती है ।कवि वर कहते हैं कि --
                  हे कन्हैया हम सुनते आए हैं कि तूं प्रेम के वशीभूत भक्तों के बनाए रिश्ते को बड़ी शिद्दत से निभाता है ।प्रेम से बनाए हर रिश्ते को बहुत मान देते हो ।कन्हैया हम भी बृजधाम में बड़ी भावना से घूमने आए है ।आप से ज्यादा कुशलता से कोई अन्य क्या घुमाएगा आप की तो स्वयं की ये लीला स्थली है ।इसलिए कान्हा हमारे गाईड की तरह बन अपनी लीला स्थलों की जानकारी देते हुए हमें वहाँ के दर्शन करवा दें ।
                                कन्हैया तुम्हारे गोकुल ,नंदगाव ,और बरसाना कैसे है।यहाँ से वृंदावन में तुम कहाँ कहां आते जाते थे तुम से अच्छा कौन घुमा सकता है ।आपकी लीलाओं के धाम के हमें दर्शन करा दो कान्हा अपने बृज धाम की सैर हमारे साथ चल कर अपने निर्देशन में हमें घुमा दो कुछ समय के लिए हमारे गाईड बन जाओ।
          कान्हा कहां आपका नंद भवन था जहां आप रहते थे ।कहां सारी गायें रहती थी ।कहाँ मैया छाछ बिलोती थी ।आप छमछम करते घुटनों के बल कहां चलते थे ,और कहां नृत्य कला की प्रस्तुती करते थे ये सब जानने की बड़ी उत्कंठा है ।और आप अगर गाईड करें तो सोने पे सुहागा हो जाएगा।
            ये भी जानना है कि आप कहां पर गायें चराने जाते ,किस स्थान पर इन्द्र के घमंड को तोड़ने के लिए आपने अपनी चिट्टी अंगुली पर गौवर्धन पर्वत को धारण किया ।कहाँ बैठ कर बंशी धुन में गायों को नाम से पुकार पुकार कर वापस बुलाते ,और कहाँ बैठ कर अपने साथी ग्वालों के साथ सहभोज का आनंद प्राप्त करते थे ये सब आप हमें घुमा घुमा कर बताएं कान्हा ।
               यमुना मैया के किस तट पर आपने कालिया नामक नाग का मर्दन किया था ,कौन से पनघट पर कौन से  वटवृक्ष केे नीचे बैठ बंशी बजाते थे गोपी की मटकी कंकर से किस स्थान पर फौड़ी थी ।हे नटखट कृष्ण कन्हैया ये सारी शैतानियां तुमने कहां कहां की तुमसे ज्यादा अच्छा कौन जानता है आप हमारे गाईड बन कर हमें अपने निर्देशन में दर्शन कराएं।
           किस स्थान पर आपने राक्षस को मार कर बृज वासियों को बचाया कहां पर राधिका रानी और गोपिकाओं के साथ रास रचा कर पूरे ब्रह्मांड को आनंदित किया कहां राधा के साथ प्रेमालाप किया ,और कहाँ सारी गोपिकाएं आपके प्रेम में दीवानी हो आपके आश्रित हो गई।ये आपसे ही जानने की प्रबल इच्छा है आप हमें आकर सारी जानकारी करवाएं।
         प्रभु हमारी इच्छा का मान रखते हुए आप द्वारा की गई लीलाएं जो चल चित्र की तरह आंखों में समाई रहती है इसे आकर आप साकार रुप से दर्शन करवा जीवन सार्थक करें प्रभु बदले में जीवन का सारा प्रेम हम आप पर न्योछावर कर देंगे बस एक बार अपनी राधिका रानी के दर्शन करवा दो।
         रचना के सुन्दर प्रसंग के माध्यम से कृष्ण द्वारा रचाई गई सभी लीलाओं का समावेश रचना में प्रस्तुत किया गया है जो कि चल चित्र सी हमारे समक्ष रचना में एक के बाद एक चलती रहती है ।धन्य हैं रचनाकार जी व रचना दोनों को नमन वंदन जय हो।
           श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य .....2 ...................

🌷 *तुमसे मिलके बातें करके* 🌷
      💗 *अच्छा लगता है* 💗
                      98

सांवरे मैं लुट गया हूँ
                           प्यार में तेरे ।
लगता नहीं है दिल मेरा
                          संसार में तेरे ।
है  कोई दुनिया , सुना है ,
                         प्यार की तेरी ।
चल मुझे ले चल ,वहाँ ,
                     अब हो चुकी देरी।
सांवरे मैं लुट गया हूँ...........
        ( श्री योगेश वर्मा स्वप्न )

       आज की रचना भक्त और भगवान के अटूट रिश्ते व विश्वास का प्रतीक है। प्रभु के समक्ष अपनी मनोव्यथा को कवि व्यक्त कर रहे है कि ........प्रभु आपसे मिलकर आपके समक्ष बैठ कर बातें करना मन भावन लगता है।आपके सामने मन की बात कह मन का भार हल्का कर लेना मुझे अच्छा लगता है।
                       मैं ये जानते हुए भी कि आप मेरी एक भी बात का जवाब नहीं दोगे। क्यों कि आप पत्थर की मूर्ति के रुप में स्थित हैं।ये मानते हुए भी आपके सामने शिकायतें करना अच्छा लगता है।
               मैं जानता हूँ कि आप अन्तर्यामी हैं सबकुछ जानते हैं। आप सबको अपना मानते हैं। ये जानते हुए भी आपको , अपना कहना अच्छा लगता है।
                जानता हूँ आपके चरणों तक भी पहुँच पाना मेरे लिए बहुत कठिन कार्य है। आप से मिल पाने में , मैं बहुत मजबूर हूँ। फिर भी आपकी शरण में आकर प्रार्थना करना अच्छा लगता है। तुमसे मन की बातें करना अच्छा लगता है।
                  भक्त और भगवान के बीच अटूट व अविचल रिश्ते को प्रस्तुत करती है आज की रचना। आस्था और विश्वास की मिसाल है रचना।नमन वंदन आभार ऐसी रचना तथा रचनाकार जी का , जय हो ।
     श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य ....2 ....................

  🌷 *तुम बिन मेरे मन की* 🌷
    🌸  *भाषा कौन पढ़ेगा* 🌸 
                      99

दास को चरणों में अपने लीजिए।.
अन्तर्यामी हृदय की सुन लीजिए।
कोई रीति नीति ना पूजा की जाने
हाथ जोड़े नाथ, अनाड़ी आ गया।
अश्रुओं के पुष्प नयनों में सजाए।
शरण में बांकेबिहारी आ गया है।
        ( श्री योगेश वर्मा स्वप्न )

            भगवान से ही सारी आशाएं, अभिलाषाएं ,आस्था और विश्वास का अटूट सम्बंध है। वो तो अन्तर्यामी है। घट घट की जानने वाले है। इसी  आशा और विश्वास के साथ भक्त कवि प्रभु के समक्ष आए हैं।.......
                     हे प्रभु आपके सिवाय मेरे मन की भाषा को कौन पढ़ सकता है।मेरे मन में पल रही शिकायतो को बिन कहे आपके अलावा कौन जान सकता है। आपसे ही आशा लेकर आया हूँ आप तो घट घट की जानते हैं।
                       आप ही हैं प्रभु जिनके लिए कोई भी भाषा पढना मुश्किल नहीं चाहे कितनी ही पुरातन भाषा हो आप हर भाषा में सक्षम है।
            आप तो आंसुओं की गहराई के अर्थ को भी पढ़ लेते है।और मुस्कराहट में छुपे दर्द को भी जान लेते हैं।
                 जिस प्रकार खुली किताब से कोई सारे रहस्यों को जान लेते हैं वैसे ही आप हमारे मन में छुपे हर रहस्य को जान लेते हैं। चाहे कोई उसे अपने हिसाब से कितना भी छुपाने की कोशिश करें।
                 आपके तो किसी को सामने आने की भी आवश्यकता नहीं ।चाहे कोई कहीं भी कितनी भी दूरी पर हो उसके मन का हाल आप जान लेते हैं।उसके अन्तर्द्वन्द्व को आप पहचान लेते हैं।
            मैं भी प्रभु आपसे कुछ कहने के लिए बेचैन हूँ।पर शब्दों को ढूँढने में असमर्थ सा हूँ। पर आपको  कहने के लिए बहुत उतावला हूँ।
                 दिल में दारुंण दुख है और आंखों में आंसुओं की धारा है।इसलिए बता नहीं पा रहा हूँ कि मेरे जीवन में क्या चल रहा है। मैं कैसी  कष्ट भरी सांसे ले रहा हूँ।जी रहा हूँ।
                हे प्रभु आप स्वयं ही मेरी धड़कनों को सुन ले, पढ़ कर जान लें और इसका नतीजा व उपाय बता दें ।आप से बढ़ कर  अच्छा न्याय और कौन कर सकता है।
                आपके सिवाय मुझे किसी और की आशा नहीं है। आप ही मेरे मन की भाषा को पढने और जानने में सक्षम हैं। आपके सिवाय ऐसा और कोई नहीं।
        अन्तर्मन की वेदना को अन्तर्यामी के समक्ष भक्त कवि मन ने रचना के माध्यम से प्रस्तुत किया है। धन्य धन्य प्रभु , रचना और रचनाकार जी हैं।नमन वंदन ऐसी कृति तथा रचनाकार जी को , आभार जय हो ।
                  श्री राधे राधे जी

कृष्ण माधुर्य .....2....................

*एक तुमको छोड़ कृष्णा और*
  🌹 *किसको ध्याऊँ मैं* 🌹
                  100

अब सौंप दिया इस जीवन का
           सब भार तुम्हारे हाथों में।
है जीत तुम्हारे हाथों में
           और हार तुम्हारे हाथों में।
मेरा निश्चय है बस एक यही
          एक बार तुम्हें पा जाऊँ मैं।
अर्पण कर दूं दुनिया भर का .....।

             एक प्रभु भक्त की व्यथा है , आज की रचना । भक्त कवि का अनुनय विनय है अपने प्रभु से कि मेरे आराध्य तो आप हैं कृष्णा मैं और किसी के पास कैसे जाऊँ।कवि कहते हैं कि....
                       हे कृष्ण मैं आपको छोडकर और किसकी आराधना करुं।आपके द्वार को छोड़कर मैं और किस द्वार पर जाऊँ ।मैंने तो अपने जीवन की बागडोर आपके हाथों में सौंप दी है।मैंने तो एक बार आपको पा लिया है ।अब और किस को पाना है।
              आप ही प्रभु मेरा उद्देश्य है और आपको पाना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है। आप ही मेरे रब है मेरी तो नाव भी आप है तो पार उतारने वाले खेवैया भी आप ही है।मेरी आत्मा आपका ही अंश है, और तन भी आप ही है। मेरे दिल और मेरी सांसों में भी आप ही समाए हुए हैं।मेरी तो अभिलाषा है कि मैं आप पर ही न्योछावर हो जाऊँ।
                         हर दम मेरे ध्यान में आप बसे हुए हैं ,और आप ही जीवन का लक्ष्य हैं।मेरे ध्यान की सीमा आप से शुरू हो आप  पर ही समाप्त होती है।मेरा तन मन आपकी आभा से ही प्रकाशित है।आप ही मेरे लिए अमृत सम है मेरा पेय भी आप हैं।मेरा ज्ञान और कर्म भी आप हैं। और आप ही मेरी भक्ति और ध्यान योग हैं।आपको पाने के लिए चाहे मुझे स्वयं से अलग होना पड़े अपने वजूद को मिटाना पड़े तो भी स्वीकार है।
                              तन रुपी आवरण को मिटा कर आत्मिक बोध का  आभास करवाओ ।अर्जुन की तरह मीत मानकर गीता के ज्ञान से आत्मा को प्रकाशित करो। ताकि अब आपके आदेशानुसार ये जीवन चलता रहे। अब आत्मा का परमात्मा से मेल हो जाए चाहे मेरा अस्तित्व खाक हो जाए ।
                 आध्यात्मिकता के रंग में रंगी है आज की रचना । पूर्ण समर्पित भावनाओं से परिपूर्ण स्वयं प्रभु पर न्योछावर होने को प्रेरित करती है।नमन वंदन आभार ऐसी कृति तथा रचनाकार जी को , जय हो ।
             श्री राधे राधे जी